संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में हुई। डॉ
हेडगेवार जी अत्यंत दूरगामी सोच के थे। वे हमेशा संघ को व्यक्ति से बड़ा मानते थे। वे जातिपाति, भाषा, क्षेत्र इत्यादि में विखरे समाज को एक माला में पिरोना चाहते थे। समाज मे समरसता लाना चाहते थे और हिन्दू समाज को संगठित करके उन्हें शक्तिशाली बनाना चाहते थे।
क्योकि यह एक विशाल संगठन बनने की ओर अग्रसर था और डॉ साहब को पता था कि जिस त्याग और समर्पण की आहुति से इस संगठन का निर्माण हो रहा है, यह संगठन चिरस्थाई रहेगा। ऐसे में एक गुरु की आवश्यकता थी।
हिन्दू समाज मे गुरु का बहुत बड़ा महत्व है। गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना जाता है
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर
गुरुर्शाक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:।।
जहाँ हम गुरु की तुलना परब्रह्म से कर रहे है, वही गुरु को भगवान तक पहुचाने वाला और उससे भी क्षेष्ठ बताया गया है।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
वर्ष 1928 में जब प्रथम गुरुदक्षिणा की तैयारी हो रही थी तभी विचार हुआ गुरु बनाने का। कई आयामो पर चिंतन हुआ।
फिर लोगो ने भगवा ध्वज पर विचार प्रारम्भ किया तब ध्यान आया कि--
भगवा ध्वज अनादिकाल से हिन्दू समाज के साथ रहा है, वह निर्विरोध है, महाभारत काल मे कौरव और पांडवों दोनों के रथो पर विराजमान था। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है। अपने राष्ट्र जीवन के, मानव जीवन के इतिहास का साक्षी यह ध्वज है। यह शाश्वत है, अनंत है, चिरंतन है। भारतीय मत पंथ सम्प्रदाय के प्रतीकों में भगवा दिखता है।
फिर आम सहमति से आरएसएस ने भगवा ध्वज को गुरु मान लिया।
आज भी गुरु (भगवा ध्वज) के सम्मुख ही शाखा लगती है एवम अन्य कार्यक्रम किये जाते है।
भारत माता की जय
वन्दे मातरम
हेडगेवार जी अत्यंत दूरगामी सोच के थे। वे हमेशा संघ को व्यक्ति से बड़ा मानते थे। वे जातिपाति, भाषा, क्षेत्र इत्यादि में विखरे समाज को एक माला में पिरोना चाहते थे। समाज मे समरसता लाना चाहते थे और हिन्दू समाज को संगठित करके उन्हें शक्तिशाली बनाना चाहते थे।
क्योकि यह एक विशाल संगठन बनने की ओर अग्रसर था और डॉ साहब को पता था कि जिस त्याग और समर्पण की आहुति से इस संगठन का निर्माण हो रहा है, यह संगठन चिरस्थाई रहेगा। ऐसे में एक गुरु की आवश्यकता थी।
हिन्दू समाज मे गुरु का बहुत बड़ा महत्व है। गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना जाता है
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर
गुरुर्शाक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:।।
जहाँ हम गुरु की तुलना परब्रह्म से कर रहे है, वही गुरु को भगवान तक पहुचाने वाला और उससे भी क्षेष्ठ बताया गया है।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
वर्ष 1928 में जब प्रथम गुरुदक्षिणा की तैयारी हो रही थी तभी विचार हुआ गुरु बनाने का। कई आयामो पर चिंतन हुआ।
- लोगो ने डॉ साहब को गुरु बनने का आग्रह किया क्योंकि उन्होंने संघ की स्थापना की और अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व थे लेकिन डॉ साहब ने गुरु बनने से इनकार कर दिया।
- किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर विचार होने लगा तब ध्यान आया कि अगर किसी व्यक्ति को गुरु मानेगे तो कुछ उसके समर्थक होंगे और स्वाभाविक रूप से कुछ विरोधी होंगे, व्यक्ति के अंदर अहंकार हो जाता है और एक व्यक्ति हर स्थान पर नही पहुच सकता है
- अगर भगवान को गुरु मानेगे तो हिन्दू समाज मे अनेक मत है, यहां 33 करोड़ भगवान है और कुछ निराकार भगवान की पूजा करते है। संघ का उद्देश्य समस्त हिन्दुओ को संगठित करना है, जो सफल नही होगा।
फिर लोगो ने भगवा ध्वज पर विचार प्रारम्भ किया तब ध्यान आया कि--
भगवा ध्वज अनादिकाल से हिन्दू समाज के साथ रहा है, वह निर्विरोध है, महाभारत काल मे कौरव और पांडवों दोनों के रथो पर विराजमान था। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है। अपने राष्ट्र जीवन के, मानव जीवन के इतिहास का साक्षी यह ध्वज है। यह शाश्वत है, अनंत है, चिरंतन है। भारतीय मत पंथ सम्प्रदाय के प्रतीकों में भगवा दिखता है।
फिर आम सहमति से आरएसएस ने भगवा ध्वज को गुरु मान लिया।
आज भी गुरु (भगवा ध्वज) के सम्मुख ही शाखा लगती है एवम अन्य कार्यक्रम किये जाते है।
भारत माता की जय
वन्दे मातरम
No comments:
Post a Comment