Saturday, 25 August 2018

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पर्व : रक्षाबंधन

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। 
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

वैसे तो हम सभी हिन्दू रक्षाबंधन मनाते है और हर भाई अपने बहन की रक्षा का प्रण करता है। इस त्योहार को हम भाई बहन के प्रेम और एक दूसरे की रक्षा का पर्व मानते थे।

जब मैंने शाखा में जाना प्रारम्भ किया तब हमें पता चला कि रक्षा बंधन बहुत ही बड़ा पर्व है। यह पर्व समाज की सुरक्षा का पर्व है, यह पर्व संगठित होने का पर्व है।

राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ में उत्सव

उत्सव दो शब्दों से मिलकर बना है- उत्त + सव
उत्त का अर्थ श्रेष्ठ या चरम होता है वही सव का अर्थ यज्ञ, आनंद आदि है अर्थात उत्सव का अर्थ आनंद को चरम सीमा तक ले जाना।

आरएसएस मेंं स्वयंसेवक कुल 6 उत्सव 
मनाते है
  • विजयादशमी
  • मकरसंक्रांति
  • वर्ष प्रतिपदा
  • हिन्दू साम्राज्य दिवस
  • गुरु पूर्णिमा
  • रक्षा बंधन


रक्षाबंधन समरसता का प्रतीक है, सभी ऊच-नीच और भेदभाव की दीवार को गिराने के लिए स्वयंसेवक समाज के साथ मिलकर समाज के सभी वर्गों में जाकर रक्षा बंधन बांधते है और एक दूसरे की रक्षा का प्रण लेते है।




2 comments:

  1. रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम का त्योहार है । यह प्रत्येक वर्ष सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस दिन बहन सुबह ही स्नान कर तैयार हो जाती है । इसके बाद वह थाली में आरती का सामान सजाकर भाई की आरती उतारती है और भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांध देती है । साथ ही भाई का मुंह मिठाईयों से भर देती है । भाई भी बदले में बहन को रूपये एवं अन्य उपहार देता है । भाई को राखी बांधते समय बहन की यह कामना रहती है कि मेरा भाई सुखी और ऐश्वर्यशाली बने । और भाई बहन की रक्षा करने का वचन लेता है ।

    प्राचीन समय मे राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी । इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा ।

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  2. रक्षाबंधन का पर्व.

    रक्षाबंधन का वर्णन आर्य ग्रंथो में स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। जब दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थ्रना की। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे।
    गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पातालऔर धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकानाचूर कर देने के कारण यह त्योहार ‘बलेव‘ नाम से भी प्रसिद्ध है।
    [कहते हैं कि जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मीजी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
    इसी प्रकार भविष्योक्त पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। देवराज इन्द्रघबरा कर देव गुरु बृहस्पति के पास गये। तब देव गुरु बृहस्पति की सलाह पर इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह सावन पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
    विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
    रक्षा बंधन त्यौहार बहुत पहले से चला आ रहा है | अब इसका स्वरुप बदल गया है, अब इसे केवलभाई-बहन का त्यौहार के रूप में प्रचारित किया जाता है | जबकि कोई भी स्त्री राखी अपने भाई, पिता अथवा अपने पति को भी बाँध सकती है |
    रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं परंतु ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बांधी जाती है।
    रक्षा बंधन के पर्व की वैदिक विधि
    वैदिक रक्षा सूत्र (राखी )बनाने की विधि :
    इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है
    (१) दूर्वा (घास)
    (२) अक्षत (चावल)
    (३) केसर
    (४) चन्दन
    (५) सरसों के दाने ।
    इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।
    इन पांच वस्तुओं का महत्त्व -
    (१) दूर्वा - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ती जाए ।
    दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन का सभी विघ्नों को विघ्नहर्ता गणेश हर लें ।
    (२) अक्षत - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत न हो सदा अक्षत रहे ।
    (३) केसर - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो ।
    (४) चन्दन - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।
    (५) सरसों के दाने – सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है किसमाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।
    इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान चित्र पर अर्पित करें । फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।रक्षा बंधन को केवल भाई बहन का त्यौहार कहना उचित नहीं है, इसको कोई भी स्त्री किसी भी पुरुष को उसकी रक्षा के लिए बांध सकती है

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